ओ कान्हा! अब तोह मुरली की, मधुर सुना दो तान-...
मैं हु तेरी प्रेम दीवानी, मुझको तू पहचान.....मधुर सुना दो तान...
ओ कान्हा.......
जबसे तुम संग मैंने अपने नैना जोड़ लिए है,
क्या मैया क्या बाबुल, सबसे रिश्ते तोड़ लिए है.....
तेरे मिलन को व्याकुल है ये, कबसे मेरे प्राण....मधुर सुना दो तान.....
सागर से भी गहरी मेरे प्रेम की गहराई, लोक, लाज , कुल की मर्यादा त्यज कर मैं तोह आई.....
मेरी प्रीती से निर्मोही, अब ना बनो अनजान....
मधुर सुना दो तान-
3 comments:
ओ कान्हा! अब तोह मुरली की, मधुर सुना दो तान-...
मैं हु तेरी प्रेम दीवानी, मुझको तू पहचान.....मधुर सुना दो तान...
ओ कान्हा.......
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
हर सप्ताह रविवार को तीनों ब्लागों पर नई रचनाएं डाल रहा हूँ। हरेक पर आप के टिप्प्णी का इन्तज़ार है.....
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मुझे यकीन है आप के आने का...और यदि एक बार आप का आगमन हुआ फ़िर..आप तीनों ब्लागों पर बार -बार आयेंगे..........मुझे यकीन है....
पलक जी, बहुत सुन्दर रचना, बधाई।
----कन्हा की लीला देख्ने के लिये मेरे ब्लोग--साहित्यश्याम -पर क्लिक करें।
aaj "janmasthami" ke avsaar pe yeh suna....maan mein ekdum pavan sa ehsaash huwa!!!
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